पहला अंक - तिसरा प्रवेश

Parent Category: मराठी पुस्तके Category: एकच प्याला नाटक - हिंदी अनुवाद

प्रवेश III

(स्थान: सुधाकर का घर। पात्र: सुधाकर, पद्माकर, सिंधु और शरद।)

सिंधु: पद्माकरदादा, मेरा मन अबभी जानेके लिए तैयार नहीं हो रहा है।

पद्माकर : सिंधुताई, अगर कोई दूसरा रास्ता होता तो क्या मैं इतना जोर देता? बाबा- खुद अमीरों ने भी इंदिराबाई को बहुत कुछ बताया; लेकिन कन्या जाति का कोई इलाज नहीं है! दादासाहेब, आपने हमारी शादी में देखा होगा कि हमारा घर अमीरों का और कितना ऋणी है! इंदिराबाई एक संस्थानिक की बेटी हैं, उनके घरमे अकेली, कम उम्र और ससुर जानेवाली। हमारी सिंधुताई उसकी आजीवन साथी हैं। इसलिए उसने जिद किया कि सिंधूताई उसकेसाथ ससुराल चले। दादासाहेब, एक कहावत है, राजहट, बालहट और स्त्रीहट विधाताको भी पूरा करना पड़ता है। हाँ, सिंधुताई को शीघ्र ही वापस भेजना मेरी जिम्मेदारी; इसके अलावा, उसकी बढ़ती आत्मा का खामियाजा उठाने के लिए हमारे यहा धन कहां से आया है? शरदिनीबाई, आप आती हो ना?

शरद: दादा-दादी जैसा तय करेंगे! दादाजी, क्या मै अपनी भाभी के साथ जाऊ?

सिंधु : भौजाई को यहां कैसे अकेला छोड़ा जा सकता है? घर में दूसरी कोई औरत नहीं है। खैर, इनको पूरे दिन कोर्ट में रहना लगता है। इसके अलावा, भाई यहाँ नहीं है।

 

सुधाकर: शरद को लेनाही चाहिए। लेकिन भाऊसाहेब, क्या आपको आज निकलना चाहिए?

पद्माकर: तुम कहो रहो, और मैं कहूं कि जाता हू, हमारा ऐसा कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन हम, मिल मालिक, बाहर के लोगों को हमे देखकर खुश होते हैं; लेकिन वास्तव में मिल का मालिक हजार यंत्रोमें से एक होता है। वह कभी भी एक चक्रभी नहीं चूकते। इसिलिए कहता हू कि आजही मुझे विदाई दो।

सुधाकर : नहीं, अगर आप यहा रहते तो चार दिन बातें करते और चलते-फिरते मजेमे बीत जाते। मेरे भाईके जानेके बाद, मुझे चार शब्द खुलकर बोलनेका समाधान नही मिल रहा है।

(राग: देस-खमाज; ताल: त्रिवत। चाल- हा समाजिया मन मोरे।)

हे दिल, यह दुखी हो गया है।

मन की शांति नहीं है,
मन की शांति नहीं है। धुरु .॥

सांस लेने वाले दोस्त की तरह, दूरी थी।
शरीर कैसे होश में आया? 1

पद्माकर: क्या करे? कोई इलाज नहीं है। इसके अलावा, हमसे बात करने से आपको क्या संतुष्टि मिलेगी? दादासाहेब भाई की कृपा से ही आप जैसे विद्वान का हमें लाभ हुआ। हमारी सिंधुताई भाग्यही खूब अच्छा है! दादा साहब, जब आप बाकी लोगोंको आपके बारे में बताते हैं तो दुनिया तुच्छ लगती है। क्या हम जैसे अच्छे कपड़ोसे सजे हुए कामगार आपसे बात करने के लायक हैं? सच तो यह है कि तुमसे बात करते वक्त मेरी बहुत ही घबराहट होती है। अगर गलती से कोई शब्द बोल दिया जाए तो आपको पसंद नही लगेगा ऐसा डर लगता है। जैसे बकरेको बिरबलने शेर के सामने बांध दिया, वैसे ही मैं आपके सामने घबरा हुआ बैठता हूं। इसलिए आपको हाथ जोडके अनुरोध करते है की आज ही हमे जाने दो।

सुधाकर : ठीक है ! सिंधु, गीता घर में है ना? उससे कहो कि तालीराम को बुलाओ, यानी वह व्यवस्था करेगा।

पद्माकर: क्या तालीराम तुम्हारा क्लर्क है?

सुधाकर : मनुष्य बहुत चतुर, बुद्धिमान और जानसे प्यार करता है।

सिंधु: और गीताबाई तो हमारे घर के आदमी जैसी है!

पद्माकर: ताई, अब आप इस तरह बात करके समय बर्बाद करे तो कैसा चलेगा?

सुधाकर : दरअसल, रानी साहब के पास के घर की जिम्मेदारी अभी बाकी है. एक या दो बार नहीं, कम से कम चार महीने तो मुझे इस ट्रांसफर पर रुकना होगा! क्योंकि आपके पास जितने अधिक दिन होंगे, उतने ही अधिक महीने होंगे।

सिंधु : दादाजी आए या बाबा आए, इनका मूल स्वभाव नहीं जाता!

सुधाकर: अच्छा चलिए।

सिंधु: हां, लेकिन क्या आपको याद है कि आपके भाई ने क्या कहा था? मेरी आत्मा के लिए नहीं तो यह फांसी के समान होगा। आपको यहा अकेले रहना हैं।

सुधाकर : तो फिर तुम मुझे एक बोर्डिंग हाउस में बिठा दो? वह रामलाल ज्ञानी हैं और आप उससे जादा आधे बुद्धिमान! सिन्धु, तुम्हारे सिवा इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस सुधाकर को बहकाए-

(राग-बेहग; ताल- त्रिवत। चाल-तेर सुनिपये।)

पियर्सिंग आपका निरंतर पैसा लगता है।
वासतीच केली नाम वदानी। धुरु .॥

जगत सकल सखी भसत् त्वन्मय।
प्यारी लग रही है लेकिन नयनी बजाओ। 1
(सभी जाते है।)

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