मंगलाचरण

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(राग-भूप, ताल-झपताल. चाल- अमरवर नमित पद.)

शरण ते करुण तव नि:श्वसन व्यसनि घन।
नंदनंदन! जना पापकामा॥ हो॥ ध्रु.॥

कलहरत करि यदा मद्यमद यादवा।
सकल कुल कलि तदा ने विरामा॥

हानि ती पाहता दृष्टी बाष्पाकुला।
सृष्टी कष्टद तुला सौख्यधामा!॥ 1॥

कर्मरेखाबले धर्म नच मज कळे।
न स्मरत मतिही तव पुण्य नामा॥

रक्षणी मम तरिही दक्ष राहूनि सदा।
अक्षय स्वपदि पद देह रामा॥ 2॥

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