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वेबडिझाईन स्पर्धा - २०२३

मराठी माध्यमातून वेबसाईट डिझाईनचे प्रशिक्षण डिजिटल भारताचे स्वप्न साकार करण्यासाठी ज्ञानदीपचा उपक्रम

मराठी संगणक साक्षरता अभियानात विद्यार्थ्यांना मराठी माध्यमातून वेबसाईट डिझाईनचे प्रशिक्षण देण्याच्या उद्देशाने २ ऑक्टोंबर २०२३ या महात्मा गांधीजयंती निमित्त्त ज्ञानदीप फौंडेशन एक अभिनव वेबडिझाईन स्पर्धा जाहीर करीत आहे.( ज्ञानदीपच्या संस्थापक कै. सौ. शुभांगी रानडे याचीही जन्मतारीख २ ऑक्टोबर आहे.)

या स्पर्धेत भाग घेणा-या प्रत्येकास मराठी टायपिंग आणि वेबडिझाईन या वेबसाईटच्या माध्यमातून शिकविले जाईल. २ ऑक्टोबर ते १ डिसेंबरपर्यंत या प्रवेश घेतलेल्या विद्यार्थ्यांना मराठी टायपिंग, एचटीएमएल, सीएसएस, जावास्क्रिप्ट व फोटोशॉप व्हिडिओच्या माध्यामातून शिकविले जाईल तसेच त्याच्या कल्पनेप्रमाणे कोणत्याही विषयावर एक वेबसाईट तयार करून घेण्यात य़ेईल व ती त्यांच्या नावाने मायमराठी या ज्ञानदीपच्या मुख्य वेबसाईटवर प्रसिद्ध करण्यात येईल. ३१ डिसेंबरपर्यंत प्रेक्षकांना या वेबसाईटचे परिक्षण करून १०० पैकी गुण देता येतील.

गुणानुक्रमे पहिल्या तीन विद्यार्थ्यांना रु. ५००० , रु. ३००० आणि रु. २००० अशी बक्षिसे दिली जातील.

स्पर्धेच्या अटी
१. ही स्पर्धा शालेय विद्यार्थ्यासाठी आहे.
२. प्रवेश शुल्क - रू. ५००
३. विद्यार्य़्यानी प्रशिक्षण काळातील सर्व चाचणी परीक्षा व गृहपाठ ठराविक वेळेत पूर्ण करणे आवश्यक आहे.

संपर्क :
ज्ञानदीप फौंडेशन, सांगली
Email - This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.
Mob. - +91 9422410520


प्रवेश शुल्क भरावयाची माहिती




अंक पॉचवा-तिसरा प्रवेश

प्रवेश III

(स्थल - रामलाल का आश्रम। रामलाल प्रवेश करता है।)

रामलाल: (स्वगत) अब मैं अपने मन की गंदी तस्वीर साफ देख सकता हूं! क्या मेरे पतन की कोई सीमा है? पिता की दृष्टि से शरद को देखें तो मानवीय सम्बन्धों की महानता के कारण देह की अन्तर्निहित यौवन दृष्टि से जरा भी नहीं मिटती। मैंने शरद के लिए जो एक सहानुभूती, भूतदया के रूप में महसूस की, वह एक कमजोर दिमाग वाले हिंदू व्यक्ति की पारलौकिक कामुकता थी! बेचार गीताको पढ़ाते हुए मै मेरे मन को धोखा देता आया हूँ कि यह समाधान तुम्हें इसलिए मिल रह है कि तुमने अनाथों को कल्याण का मार्ग दिखाया है। लेकिन यह इतना उदार नहीं था! गीता को सीखता देख शरद को संतोष हुआ, तो मैं उस समय उत्साहित हो गया! वो भी प्रियाराधनका एक तरीका था!

(राग- भैरव; ताल- त्रिवत। चाल- प्रभु दाता रे।)

मन पापी है। करिते निजवंचन अनुघटिदिन॥ धुरु .॥

उपसंपर मतिमेशज सेवुनी सुप्तियत्न कारी, परी ते।
अच्छे विवेक में असफल अंत। 1

एहसान के लिए कृतज्ञता से, बेचारा भगीरथ जल्द ही मुझसे खुले दिल से बात करने लगा। तभी मैं इससे ऊबने लगा। ज्यादातर मौकों पर मैं सोचता था कि मनुष्य की उस फालतू आत्मीयता को साझा करके आपको भगीरथ से घृणा होती होगी; लेकिन वह नापसंदी का असली कारण नहीं था! बिना जाने मेरे मन में जो गुप्त ईर्ष्या उत्पन्न हुई, वह यह थी कि शरद ने समय-समय पर मुझसे कहा कि भगीरथ उसके साथ खुले दिल से व्यवहार करता है।

जैसे ही युवा आत्माओं ने एक-दूसरे को देखना शुरू किया, मेरे वयस्क मन में ईर्ष्या भड़क उठी! तो - लानत है, लानत है मुझपर! आज मेरा दुर्भाग्य है कि सुख के क्षुद्र लोभ से पुत्र माने जाने वाले भगीरथ को दुखी करके, कन्या माने जानेवाली शरद के कोमल हृदयपर जलते टुकडे डालकर  मैं अपने बुढ़ापे पर, रिश्ते की जिम्मेदारी पर और विचार की अंतरात्मा पर भी पानी बहाने के लिए तैयार हुआ। चूँकि यह हमारी बदकिस्मतीका परिणाम है।

पराक्रमी व्यक्ति द्वारा प्राप्त शक्ति को स्वतंत्रता की उदारता तक सीमित करने की आदत नहीं है, इसलिए संयोग से प्राप्त छोटी शक्ति का उपयोग कर कमजोर आत्माओं पर हम सुल्तानी अरेरावी रहे हैं। आज, हम भौतिक संसार में ईश्वर द्वारा निर्मित सौंदर्य की खोज में रुचि नहीं रखते हैं, क्योंकि हजारों वर्षों से हमारे मन मृत परंपराओं के निरंतर बोझ से लकवाग्रस्त हो गए हैं। ऐसी सुंदरता पाने की कोई पवित्र इच्छा नहीं है। पुरुषार्थ में उस इच्छा को पूरा करने की शक्ति नहीं है। और जो वास्तविक कारण मिलने पर निकटतम खुशी को भी छोड़ देने जैसी उदार कर्तव्यनिष्ठ आपत्ति करने वाला कोई नहीं है! क्षुद्र सुख की आशा में भी पितरों द्वारा बोले गए व्यर्थ वचनों के विचार तुरन्त रुक जाते हैं। ज्ञान भले ही मन को ऊँचे वातावरण में रखता हो, पर आकाश में उड़ने वाले गिद्धों की तरह हमारे मन को थोड़ी सी भी लालच से तुरंत धूल मिल जाती है। पांच हजार वर्ष की आयु गिनने वाले भारतवर्ष के रूप में पुराणपुरुष,  अपने विशाल शरीर के लिए हिमाचल जैसा प्रतापी सिर बनाकर क्या विधाता गंगासिंधु जैसी पवित्र माथे की रेखाओं से भी अपनी खुशहालीका स्थायी लेख नहीं लिख पायी? कहो, दुर्भाग्यपूर्ण भारतवर्ष! जब आप दक्षिण महासागर में जीवन देने के लिए समुद्र में उतरे थे तो भगवान ने आपको किन पापों का प्रायश्चित करने के लिए उठाया था? इस डर से कि भविष्य में रामलल जैसी गरीब पीढ़ी का जन्म होगा

हे प्रभु, क्या मेरे पाप मुझे कभी क्षमा किए जाएंगे? भगीरथ और शरद से किस मुंह से माफी मांगूं? नहीं, मन का तीव्र आवेग अब मृत्यु के सिवा किसी और चीज के साथ नहीं रुकेगा। (भागीरथ और शरद आते हैं।) हत्भागी रामलाल, कर्मों के फल भोगने के लिए पत्थर के दिल से तैयार हो जाओ, और इन दुखी आत्माओं के लिए क्षमा मांगो।

भगीरथ: भाई, छोटा मुँह बड़ी घास लिया तो अपने प्रिय भगीरथ को क्षमा करोगे? मैं आपके चरणों में एक निवेदन करने आया हूं।

रामलाल: भगीरथ, तुम आज मुझसे बात करते समय इतना औपचारिक रवैया क्यों अपनाते हो?

भगीरथ: भाई साहब, मैं आपकी शरण में आया हूँ जनसेवा करना सीखने के लिए; पूर्व में, सभी शिक्षा प्राप्त करने के बाद गुरुगृह छोड़ने पर गुरुदक्षिणा देने की प्रथा थी; लेकिन आजकल हर महीने एडवांस में आपको एक फीस देनी पड़ती है! भाई साहब, इसी नई विधि को अपनाकर मैं आपको गुरुदक्षिणा देने आया हूं। इसे स्वीकार करें और अपने बच्चे को आशीर्वाद दें!

रामलाल: कैसी दक्षिणा दोगे ?

भगीरथ: शरद के प्राणोंकी जिन्होंने मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दिया है! भाई, आपके चरणों में मैं सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हूँ, जैसा आप कहते हैं!

रामलाल: शरद, भगीरथ ने जो कहा वह सच है? (शरद नीचे देखत है।)

भगीरथ: इस मौके पर वह शरमा कर क्या कहेंगी?

रामलाल: (स्वगत) हाँ, वास्तव में! यह क्या है, लेकिन बेचारी हिंदू बाल विधवा किसी भी अवसर पर क्या कहेंगी? जैसे ही हमने ईसाई धर्म का सिद्धांत सुना कि गाय की कोई आत्मा नहीं है, हम हास्यास्पद आर्यवाद के साथ हँसे, लेकिन मेरे जैसे क्रूर जानवरों के पशुवत रवैये ने इन बेचारी गायों को न केवल आत्मा बल्कि जुबान भी नही रखी!

भगीरथ: शरद, भाई साहब को मेरी बात सच नहीं लगती है; मेरे वचन के लिए आप-

रामलाल: रुको भगीरथ, क्या तुम समझते हो कि यह तुम्हारे प्यार की निशानी है कि तुम इतनी आसानी से शरद को छोड़ने के लिए तैयार हो? मुझे नहीं लगता कि शरद के लिए आपका हार्दिक प्यार बिल्कुल सच्चा था!

भगीरथ: आपको ऐसा लगता है! सर्वज्ञ सर्वेश्वर क्या सोचते हैं? आपके साथ होनेवाले नये रिश्तेको देखकर, मुझे शरद के बारे में खुलकर बात करने का कोई अधिकार नहीं है!

रामलाल: (स्वगत) अच्छा किया, भगीरथ, अच्छा किया! यह रामलाल आप जितने महान हैं, उतने ही नीच हैं! मेरे मन के हल्केपन के कारण बेचारी शरद के आपसे प्यारको मैने कुचल डाला। (खुलकर) क्या आपके लिए यह सही है कि आप उसे इतने पवित्र प्रेम करनेके बाद समर्पित करके उसे छोड़ दें?

भगीरथ : एक बार नहीं, हजार बार उचित है! मैं इस प्रलोभन को उस काम के लिए छोड़ना चाहता हूं जिसके लिए आपने मुझे जीवन दिया है! अगर मैं खुद को शरद के आकर्षण में पाता हूं, तो मैं आपकी सलाह का पालन नहीं करूंगा और मुझे भविष्य के जीवन का रास्ता नहीं मिलेगा! भगीरथ तुरंत सांसारिक सुखों की और प्यार की बेड़ियों को तोड़ रह हैं और एक महापुरुष के रूप में समाज की सेवा करने के लिए, मेरे देश के लिए, आपके उपदेश के लिए! आप जैसे महापुरुष की सलाह-

रामलाल : भगीरथ, उपदेश देना इतना आसान काम है कि मुझे महान कहना हास्यास्पद है! उपदेश करने वालेसे उपदेश सुनकर अपने मोहको त्याग देनेवाला ही हमेशा श्रेष्ठ होता हैमहान हृदय वाले बालकों, यह छोटा-सा रामलाल त्याग के दीप्तिमान तत्त्व से आलोकित तुम दोनों के मुख खुली आँखों से देखने योग्य नहीं है! क्षणिक पापमय प्रलोभन के लिए मुझे क्षमा करें! बेटा शरद, मेरे अपशब्दों के लिए मुझे एक बार माफ कर दो, पामर मन और पाप का ह आखिरी स्पर्श! भगीरथ, शिष्यने पहले गुरु को गुरुदक्षिणा देनी चाहिए यह जैसा परिपाठ है उसीतरह कुशाग्रबुध्दीके शिष्यको प्रोत्साहित करनेके लिए कोई पुरस्कार देनेका भी नियम है। आपने मेरी शिक्षा का पहला पाठ इतनी चतुराई से सीखा है कि आपकी सराहना करना मेरा कर्तव्य है! उदार बच्चे, अपनी खूबसूरत तस्वीर के साथ खुश रहो!

(शरद का हाथ भागीरथ के हाथ में देता है।)

(राग- देस्कर; ताल- त्रिवत। चाल- अरे मन राम।)

स्वीकार्य राम्या अमल चित्रा या।
आप इनाम के पात्र हैं। धुरु .॥

छात्र अच्छा है। व्यवसायी। हे वितरित गुरुमाया! 1

भगीरथ, सार्वजनिक सेवा के एक सख्त व्रत का पालन करते हुए, कभी-कभी नेता को सार्वजनिक विवाद का विषय होना पड़ता है। रामलाल का यह खाली दिल-

(गीता रोते हुए आती है, उसे गले लगाते हुए)

आओ बेबी, आओ! रामलाल का ये खाली दिल है समर्पित आप जैसे अनाथों को! तालीराम की असामयिक मृत्यु के कारण आप पर जो दुर्भाग्य आया है, वह धन के अलावा कुछभी काम नही आएगा। यह रामलाल का बुढ़ापा आपके जीवन के चंद साल आपके लिए निकालकर और आप जैसी लड़की को पितृसत्ता मानने में ज्यादा सार्थक होगा, मेरे बुढ़ापे में से कुछ साल निकालकर खुद को युवा बनाने की कोशिश करने और उनकी शरद में एक बोझ जोड़ने से ज्यादा सार्थक होगा। मैं तुम्हें वह सारी दौलत दे रहा हूँ जो मुझे अपने चचेरे भाई से मिली है! वह आपके काम आएगी! हमारे समाज ने अभी तक इतना बड़ा सुधार नहीं देखा कि आप जैसी कुरूप विधवा के प्रति सहानुभूति हो! भगीरथ जैसा असाधारण रत्न मिलना संभव है! बाकी समाज का अधिकांश हिस्सा रामलाल जैसा है! मेरे उदाहरण से, मुझे लगने लगा है कि हमारे सुधार में बहुत आत्म-निषेध है! अनाथ बाल विधवाओं की दया के लिए हमें एक अच्छे चेहरे की भी आवश्यकता है। हमारा सुधार अभी भी देखने वाले की नजर में है! हमारा ज्ञान अभी भी जुबान पर नाच रहा है। जीभ की नोक काट दी जाए तो भगवान भी नहीं जान  सकेगा कि हम में से कौन संस्कृत और सुशिक्षित माना जाता है! इतने लंबे समय तक शरद के प्यार में न पड़ पाने का मुझे अफ़सोस हुआ; परन्तु यदि प्रेम के पात्र मनुष्य का धर्म है, तो दया देवताओं का गुण है! (पद्माकर आते हैं।)

पद्माकर: भाई सुधाकर ने अपने बेटे को मार डाला और ताई को घायल कर दिया! मैं उसे अपराधी के हाथ पकड़ने को निकला हूं, मेरे साथ आओ।

रामलाल : क्या कह रहे हो ?

पद्माकर: वैसे तो मैं आपको सब कुछ बता देता हूं; लेकिन पहले जल्दी चलते हैं; मेरा यह भी कहना है कि आपको इस बार सुधाकर को लेकर अपना विचार नहीं बदलना चाहिए। अगर उस नरपशूके मोहसे से बच गय, तो मेरी अनाथ ताई जी सकेगी! आओ आओ!

रामलाल: ओह, लेकिन ऐस अविचार -

पद्माकर: मैं अपनी बहन की दुर्दशा की कसम खाता हूँ कि मैं अब तब तक नहीं रुकूँगा जब तक मैं सुधाकर को सरकार शासन नहीं दे देता! इसे लापरवाही कहें, इसे बदला कहें, जैसा आप सोचते हैं वैसा ही कहें! जल्दी चलो

रामलाल: भगीरथ, शरद और गीता दोनोको लाओ। सुधाकर के पास चलते हैं। (सभी जाते है।)

अंक तिसरा - तिसरा प्रवेश

प्रवेश III

(स्थान: रामलाल का घर। पात्र: भागीरथ और शरद)

भगीरथ: यह सही है। यह लोकभ्रम एक लोकप्रिय निबंध है, जिसे श्रृंखला में सर्वश्रेष्ठ में से एक माना जाता है। सुनो ... (स्वागत) मुझे नहीं पता कि मैं क्या पढ़ रहा हूँ और किसके आगे पढ़ रहा हूँ! शास्त्रीबुवॉके की विधवा की दशा पर भावभीनी और भावपूर्ण संवेदनशील उद्गार मै इस बाल विधवा के सामने पागलों की तरह पढ़ चुका हूं (खुलासा) शरद,  भाई साहब के वापस आने का समय हो गया है। हम आज बहुत पढ़ हैं, है ना? पूरा करेंगे यही, ऐसा अब मुझे लगता है?

शरद: (थोड़ा हंसते हुए) अच्छा, आज रहने दो।

भगीरथ: (स्वगत) इसने हसकर हमने पुरुषों का अच्छा मजाक उड़ाया! इस चतुर और प्यारी लड़की के सामने दिमाग की चाल नहीं चलती। (खुलासा) शरद, मैं आपकी मुस्कान का अर्थ समझता हूं। आप मेरे विचारों को ठीक से जान लियाशरद, , धर्म की वजह से, परंपरा के कारण कहो, या पुरुषों के स्वार्थ के कारण कहो, लेकिन किसी भी ईमानदार व्यक्ति को यह स्वीकार करना होगा कि हिंदू समाज में आप विधवाओं को अपमानित किया जा रहा है।

शरद : भगीरथ, सांसारिक हानि के दु:ख के साथ-साथ कुछ इस तरह के अपशगुन का भी तीव्र दु:ख हमें भोगना पड़ता है-

(राग- बगेसरी; ताल- त्रिवत। चाल- गोरा गोरा मुख।)

अमानवीय अधिकार। डेड हार्ट धुरु .॥

दग्ध वल्लरी जाी चंचा अदया॥ 1

अतीत का जीवन व्यर्थ है। 2

भगीरथ: यह बहुत सच है। हम पुरुष विधवाओं के बारे में विचारहीन होकर उनके बारे में जो सोचते हैं उस पर विश्वास करते हैं, और आपके द्वारा बोले गए दोहरे दुःख को बढ़ाते हैं। इस साधारण तथ्य में विश्वास करना कि एक विधवा गुणी है, हमें संकट लगता है। कोई बाल-विधवा किसी से निर्देश मांगे तो देखने वाले को लगेगा कि वह पाप का मार्ग सोच रही है! कहने की जरूरत नहीं है कि अगर कोई पानी में डूब रही बाल विधवा को हाथ दे तो वह उसे बाहर निकालने की बजाय नर्क में धकेल रहा है. और अगर बाल विधवाओं को इस नारकीय पीड़ा में तड़पाया जाता है और पूछा जाता है कि जीवन कैसा सुखी होना चाहिए, तो ये धर्मसिंधु तुरंत गंभीरता से कहेंगे, विधवाओं की पीड़ा की परिपक्वता सात्त्विक संतुष्टि से परे क्या है जो विधवाओं को रिश्तेदारोके बच्चों के साथ खेलने से मिलती है। ? अगर ऐसा है, तो मैं कहता हूं, इन विवेकपूर्ण महात्माओं को अपने पड़ोसियों के पैसे गिनकर पैसे की अपनी वासना को संतुष्ट क्यों नहीं करना चाहिए? वे अपने पेट की ऐंठन को संतुष्ट करने के लिए पंचपकवन्ना की ओर दौड़ने के बजाय किसी अजनबी के पेट में चार घास दे कर अपनी लालसा को संतुष्ट क्यों नहीं करते?

(राग-कफ़ी; ताल-त्रिवत; चाल-मोरे नटके प्रिया।) सद्गुण वधोनी हा! धंभा विजय मिरवी महा। धुरु .॥ आसक्ति थोड़ी शक्ति नहीं। वर्तसी भोगी सात्वती। तोची; चौंकिए मत। 1

शरद : जाने दो - भगीरथ, तुम्हारे क्रोध का क्या होगा? भगीरथ, हम एक-दूसरे को बहुत दिनों से जानते हैं, इसलिए मै आपसे खुले दिमाग से पूछत हूँ, और वह भी, हाल ही में मेरे दादाजी की हालत देखकर, मेरी आशा धूमिल हो रही है - क्या इस प्रलोभन से छुटकारा पाना संभव है?

भगीरथ: शरद, अस्तिपक्ष द्वारा इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, अपना उदाहरण देते हुए, मेरा मन मेरे पिछले व्यवहार की तुलना में आत्म-प्रशंसा के विचार से अधिक थक गया है।

शरद: फिर कभी नहीं - संकोच क्यों? फिर से पीनेकी याद भी नहीं आयी?

भगीरथ : गलती से भी नहीं! और क्यो होग? आजकल मेरा समय कितनी खुशी से बीत रहा है- एक तरफ भाई की अच्छी सलाह की रोशनी और दूसरी तरफ आपके साथ का ठंडा चाँद-

शरद: ठंडा चाँद क्या है? (भागीरथ नीचे देखता है।)

भगीरथ : मेरी बोलनेकी जोशमे में एक शब्द निकल गया-

शरद : तुम मेरे सामने आरोपी के पिंजरे में खड़े नहीं हो, सच बोलने के वादे की कसम खा रहे हो! मैंने भी आसानी से पूछा, गुस्से में नहीं- (रामलाल आता है।)

रामलाल: शरद, तुमने मुझे नहीं बताया कि सुधाकर तुम्हारे घर में दो-तीन दिन से शराब पी रहा है? अब गीता मुझसे मिली और उसने मुझे यह बताया। मैं इस बारे में बात करने के लिए सुधाकर के पास गया, लेकिन मेरी बात नहीं बनी। भगीरथ, पद्मकारा और बाबासाहेब को समय-समय पर तार भेजोजल्दीसे यहा आनेको बोलोउनके कहनेका सुधाकरपर कोई परिणेम होके इस भयानक स्थितीपर काबू पाया जा सके  अब यही एक उम्मीद बची हैशरद, तुम अभी  घर जाओ और गीता तुम्हारे घर चली गई, उसे अपने घर में रखो! तालीरामने अपने घर से उसे निकाल दिया है। यदि वह तुम्हारे घर नही रहना चाहती, तो उसे मेरे पास भेज दो! जल्दी चले जाओ, वह बेचार इसी कारण चिंतित होगी

शरद: हाँ, मैं चल जाती हूँ। (जात है।)

भगीरथ: क्या अब हम तार करें?

रामलाल : इतनी कोई जल्दी नहीं है। अगर आप इसे कुछ समय बाद करते हैं तो भी यह काम करेगा।

भगीरथ : तो भाई, कल का विषय कब तक पूरा करोगे? कल हमने बात करना बंद कर दिया। मैं तब से उसी के प्रति आसक्त हूँ। लोक कल्याण का मार्ग क्या है?

रामलाल : भगीरथ, हिन्दुस्तान की भावी समृद्धि आज एकतरफा नहीं है, क्योंकि इसे ही जनकल्याण का एक मात्र राजमार्ग बताया जा सकता है. एक ओर जहां राजनीतिक सुधार हैं, वहीं दूसरी ओर सामाजिक सुधार हैं। यहाँ धर्म है, यहाँ उद्योग है, यहाँ शिक्षा है। यहां महिलाओं का सवाल है। यहाँ अछूतों की बात है, जाति का भ्रम है। यह कहना सुरक्षित है कि ऐसे चमत्कारी अवसर में केवल एक ही रास्ता दूसरे से बेहतर है। इस विषय पर उनके विचार स्थिति के उनके अनुभव के समान ही विविध हैं।

 हमें अपनी जमीन उठाने के लिए जितनी अलग-अलग प्रकृति की मूर्तियां मिल सकती हैं, चाहिए, जो हजारों साल के बोझ तले 33 करोड़ आत्माओं के वजन से सिमटती जा रही है। जो छात्र जनहित में पड़ना चाहता है वह कायचामनसा से पहले यह पाठ सीख चुका है- नहीं; यहां तक ​​कि जी भरके समझाना चाहिए। अगर कोई हमसे अलग तरीके से जनहित के लिए प्रयास कर रहा है, उसके प्रति सहानुभूति नहीं दिखा रहा है, दूसरों के प्रयासों के प्रति अनादर दिखा रहा है, प्रतिस्पर्धा बढ़ा रहा है और राष्ट्रीय हित की भावना से एक-दूसरे को अपमानित कर रहा है।

भगीरथ, मैं दिव्य ज्ञान का महात्मा नहीं हूं; लेकिन जब से मैं चीजों को यथासंभव शांत और संतुलित दिमाग से देखता हूं, मेरे विचार बदलने लगे हैं। राजनीतिक सुधार के समर्थक विधवाओं के कमजोर दिलों के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश नहीं करते क्योंकि वे अपने अलग रास्ते पर जाते हैं। जो लोग आर्य धर्म पर बहुत गर्व करते हैं, वे आर्य धर्म के निर्माण के लिए छह करोड़ महामंगा अस्थि कंकाल बनाने की योजना बना रहे हैं ताकि आर्य धर्म की जीत ऊंची और ऊंची दिखे। गरीब उस वर्ग को नामशूद्रों और अतिशूद्रों के तथाकथित संरक्षकों तक बढ़ाने के बजाय, ब्राह्मण वर्ग को दफनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। कितने प्रकार के लोग हैं, कितने प्रकार के मत हैं, कितने प्रकार के मत हैं, कितने प्रकार के हैं।

त्रिसप्तकोटिकन्थाक्रुतनिनादकरले जननी यह संदेश हम पामर लोग कैसे सुनेंगे? भगीरथ, व्यापक सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक सार्वजनिक शिक्षा, हालांकि, उन तरीकों में से एक है, जो न केवल हमें परम अच्छे की ओर ले जाता है, बल्कि अन्य सभी तरीकों पर भी प्रकाश डाल रहा है।

भगीरथ आर्यावर्त के बढ़ते भाग्य का सही मार्ग बताने वाले मंत्रद्रष्टा महात्मा का खुलासा होना अभी बाकी है।

आज आप और मेरे जैसे पतित मनुष्य का कर्तव्य है कि मानव प्रकृति के आगमन की उत्सुकता से प्रतीक्षा करें। अगर सारे रास्ते साफ-सुथरे रहेंगे तो उस महात्मा की यात्रा उतनी ही सुखद होगी जितनी वह सोचते हैं। भगीरथ, आज हमारे पास बहुत सारे निजी काम हैं। अधिक की जरूरत है। भविष्य में किसी बिंदु पर, मैं आपको इस सार्वजनिक शिक्षा के सबसे व्यापक प्रयास के बारे में जितना बता सकता हूं, बताऊंगा। चल भागीरथ, अभी तुम्हारा दुर्भाग्य सुधाकर की लत से जुड़ा है। पद्माकर को जितने तार लिखूं उतने तार भेजो। चलो आओ

अंक चौथा -दुसरा प्रवेश -2

सुधाकर: (स्वगत) सिंधु, इतनी महानता के साथ, आपने गीताका बोलना क्यों बंद कर दिया? शराब के नशे में सो गई मेरी रूह को तेरे कोमल बोल कैसे जगायेंगे? गीता के मुंहसे निकलनेवाले  ऐसे क्रूर पत्थरों से मारा जाना जरूरी है! गीत का हर शब्द  मेरे जानपर कोड़े जैसा लगता था! सिंधु, आप अपने पति के पेट पर बैठी इस शराब की सराहना करती हैं, तो यह आपको सांबा पिंडी पर बैठे बिच्छू के डंक की तरह और भी चिढ़ाती है!

सुधाकर, चांडाल, केवल शराब की बुरी आवाज से पशु बनकर इस देवता का कितना अपमान किया तूने! आपकी सारी बुद्धि कहाँ गई? मैंने ऊँच ब्राह्मण जाति को लात मारी, विधवा की जिम्मेदारी छोड़ दी और वेश्या की तरह शराब पीने लगा! उफ़! देखो सिंधु आ गई है। जिस देवी के साथ मैंने शराब पी थी, उसे मैं यह मुंह कैसे दिखाऊं? (वह अपना चेहरा ढक लेता है और रोता है। सिंधु करीब आती है और खड़ी हो जाती है।)

सिंधु: क्या हुआ गीताबाई मुखसे बहुत तिखी है! उनकी बातोंपर कोई ध्यान न दो!

सुधाकर : सिंधु, मैंने आज से शराब छोड़ दी!

सिंधु: (खुशी से) सच में क्यों?

सुधाकर: सच, बहुत सच! आज से पीना छोड़ दिया; हमेशा के लिए छोड़ दिया!

सिंधु: आह! अगर ऐसा हुआ तो भगवान ही प्रसन्न हुआ!

(राग-भैरवी; तल-केरवा। चाल-गा मोरी नंदी।)

भगवान अजी गमला मणि तोशला। धुरु .॥

कोपे बहू माझा। तो प्रभुराज अब हँसे। धन संतुष्ट है।

मरे हुओं का दिल था नाथ, पूरा हुआ।
वादे ने इसे जीवंत बना दिया।
अमृत ​​शब्द फिर से सुनाई देते हैं।
मेरी पूरी सुनने की शक्ति एक साथ है। 1

इसे देखिए, पैरों पर सिर रखकर बिनती करती हूँ  कि शुभ मुहूर्त का यह निश्चय कभी नहीं भूलना चाहिए। (उसके पैरपर  माथा रखती हैं। वह उसे उठाता है।)

सुधाकर: सिंधु, सिंधु, क्या कर रही हो? क्या तुम अपना सिर मेरे पैरों पर रखते हो? इस  सुधाकर के? यह शराबी सुधाकर क? अपनी विद्या, ज्ञान, नाम,को शराबमे डुबाया उस शराबी सुधाकर क? सिंधु, मैंने शराब की आदतसे क्या कर बैठा हूँ? पिता क गुण और , ब्रह्मकुली की पवित्रता! को शराब ने तिलांजली दी। आप जैसी देवी का ऐसा उपहास! आप अपने पिता के घर में हरएकको जो घास रोज मुफ्त दिये जाते  थे, वह आपको अन्ऩका घास मिलना भी मुश्कील कर दिया कि गीता जैसी लड़की आप पर रहम करे और सहस्रभोजन का रास्ता बताए! एक बच्चे के रूप में, आपने अनजाने में गुड़िया-गुड़िया की शादी में छोटा अंतर्पाठ के लिए पैठनीकी  तरकीबें बनाई होंगी; लेकिन आज फटे कपड़े देखकर बाहर  जानेकी चिंता रहेगी! अपने बाप के घर में खेलते-खेलते तुम धानपीसनेकी जात को मोतियों से भर देत, लेकिन किसी ने सोचा न होगा। मैंने तुम्हें ऐसी हालत में बनाया है कि पेट के लिए आँसुओं के मोती  पीसना पड़े!

आपका पवित्र पुण्य है कि पुण्य कर्मों के लिए पंचपतिव्रत प्रतिदिन आपकी पूजा करें! तुम्हारे उस अंग को तालीराम जैसे जानवर ने छुआ था! दरिद्र परन्तु पवित्र विधवा को देखकर देवता भी मार्ग से दूर हो जाये  उस विधवा में गिरे बेचारे शरद का भी मज़ाक उड़ाया! मै पातकोंमे सबसे अच्छा पातकी हूँ ! क्या तुम अपना सिर मेरे पैरों पर रखते हो? तुम मुझे नरक में क्यों नहीं फेंक देत?

सिंधु, गीता ने क्या झूठ बोला? तुम मेरे जैसे पाषाण देवता की भक्ति से क्यों पूजा कर रहे हो? क्या मैं तुम्हारा पति बनने के योग्य हूँ? बाबा साहेब, आपने इस मणि को पूरी तरह से धोखा देकर शराब में डुबो दिया है! लेकिन आप पहले क्या जानते थे, कि ब्राह्मण कुल के इस विद्वान सुधाकर का भविष्य में ऐसा नशा होने वाला है! तक्षक को मारने के लिए, अस्तिका ने इंद्रदेव को आग में कूदने के लिए आमंत्रित किया, जो उसका समर्थन भी कर रहा है।

सिंधु: सुनते हो? मै आपको ऐसा कुछ बुरा बोलने नही दूंगी। क्या आप आज से छोड देनेवाले है ना? तो अतीत से परेशान क्यों? वो गंगा को मिल गया! एक बार जब मन संयमित हो जाता है, तो आपके पास क्या कमी है? सब कुछ सोने जैसा हो जाएगा! क्या आप जारी रखना चाहते हैं?

सुधाकर: हमेशा के लिए, हमेशा के लिए, हमेशा के लिए भी! मैं आपके बच्चे की कसम खाता हूँ कि आज से शराब पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वकील का चार्टर चला गया है; मेरे चार वजनदार दोस्तों के बीच बोलके नौकरी की तलाश करुंगा। अब यह सुधाकर आपके एक शब्द से आगे नहीं जाएगा!

सिंधु: आह! ऐसा हुआ तो अमृतेश्वर पर कपासकी दिया लगाकर- पाँचों आत्माओं की पंचरति लहराऊँग! आपके एक शब्द से मेरी प्रसन्नता त्रिभुवन भर गई है और आकाश नीचे आया है ! मुझे नहीं पता कि ये सोने के अक्षर किसे बताएं! सबसे पहले, यह आपके छोटे बच्चे कोही ये बताती हूँ !! (जात है।)

सुधाकर: (स्वगत) कौन-सा उत्साह मेरी शाश्वत निराशा क यह परमानंद नहीं देगा?

(राग- खमाज; ताल- त्रिवत। चाल- दखोरी गई गाई।)

डेटसे बहू उत्सव मन विमली उनका आनंदमय नया जीवन। धुरु .॥

निर्मल मंगल पवन पुण्यद। जे. त्रिभुवानी। तद्भवन सतीमन। प्रसाद, उसे जन्म मत दो। 1

(सिंधु बच्चे को लाती है।)

सिंधु: क्या आप देखते हैं कि यह झूठा यह सुनकर कैसे हंसता है? बेबी, आपके पास फिर से एक सुनहरा दिन होगा!

(राग-पहाड़ी; ताल-कावली। चल-तारी विचेला।)

आप कैसे स्वस्थ हैं उठ जाओ झानी ताक उदय। धुरु .॥

साल क्यों नहीं। घण सुधेचा, छबडा ?॥ 1

सरले अजी सारे। कुदिन अपुले, बगदया! मैं 2

बेबी, तुम अभी भी इतने छोटे क्यों हो? इस खुशी की गुड़ी लेकर बाबा और भाई के पास नहीं दौड़ना चाहते? तुम मुझसे बार-बार क्या पूछ रहे हो? वहाँ सोचो? क्या आपने सुना है, इसे एक बार अपने मुंह से कहना बेहतर है!

सुधाकर: बेबी, मैं कसम खाता हूँ कि इस सुधाकर ने हमेशा के लिए शराब छोड़ दी है! (वे दोनों लड़केसे मुह मिलाते हैं। पर्दा गिर जाता है।)

अंक तिसरा - दुसरा प्रवेश

प्रवेश II (स्थान: तालीराम का घर। पात्र: तालीराम और गीता)

तालीराम : जो कुछ घर में तुम्हारे पास है लाओ! मंडलका आज भुगतान करना चाहता हॅ। जो भी हो लाओ।

गीता: क्या हैं घरमे लानेके लिए? घर शीशे की तरह साफ हो गया है! घर में आप जिधर भी देखें, आपको अपने कर्तुतोंसे आयी बूरी हालत नजर आ सकेगी

तालीराम: तुम झूठ बोल रह हो! जेवर तो घर में भी कुछ नहीं!

गीता: आह! नहीं नहीं नहीं! क्या अब हम आपके सामने माथा तोड़ ?

तालीराम: देखो, झूठ मत बोलो। तुम्हारे पास तो कुछ नहीं है ?

गीता: मेरे माथे पर खाली तुम्हारे नामका कुमकुम बचा है। (कुंकू पोछके) इसे एक बार ले लो- उस कला के माथे पर रख दो, और पत्नी की दूसरी दुनिया के नाम पर आखिरी घूट ले लो! इससे  तुम छूट गए, और मैं भी छूट गयी!

तालीराम: देखो पत्नीकी जाति कैसी है! गीते, यह मेरी बेइज्जती है!

गीता: अहाहा! मर्यादा रखनेके लिए क्या आपने गुणोने कोई विजय हासिल की! तुंमने अपनी ही दुनिया बरबाद की, दूसरों की दुनिया भी बरबाद की! घर का चूल्हा ठंडा है। मेरी हड्डियाँ वहाँ रखो या तुम्हारी?

तालीराम: क्या अजीब बदचलन औरत है! गला घोटके मार डालू क्या? मैं शराब पीता हूँ इसलिए तुम मेरी बेइज्जती करती हो! रुको, तुम्हे नीचे दबोचकर शराब पिलाता हूँ! चलो, शराब पी लो, या घर से निकल जाओ! यदि नहीं, तो मैं तुम्हे पुराने बाजार में ले जाऊंगा और नीलामी बुलाऊंगा और जरूरतवाले ग्राहकको बेच दूंगा!

गीता: हाँ! मुंह की बात भी होगी! तुम्हारे पूर्वज ऊपर से नीचे आना चाहिए! आप गंदगीमे लुढकते हो वो काफी नही है?

तालीराम: क्यों जाती हो या पिती हो? क्या कुछ खरीखोटी सुनाकर आपने मुझे दादा साहब के घर जाने से रोका? चलो, ये शराबका घूट ले या मै तुम्हारे गलेका घूट लू? (वह उसे पकड़ लेता है। दोनों लड़ते हैं। वह उसे दूर धकेल देती है।)

गीता: हे भगवान, अब इस घर में नही रहना! (जाती है।) 

तालीराम : कुछ नही बिघडेगा आप जानेसे! तुम्हारे नाम से स्नान करके मैं मुक्त हो जाऊँगा ! अब लौट आओ घर में- तो खड़े-खड़े नहीं मारे गए तो तालीराम नाम नहीं। (जाता है। पर्दा गिरता है।)

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