अंक तिसरा - दुसरा प्रवेश

Parent Category: ROOT Category: Uncategorised Written by सौ. शुभांगी रानडे

प्रवेश II (स्थान: तालीराम का घर। पात्र: तालीराम और गीता)

तालीराम : जो कुछ घर में तुम्हारे पास है लाओ! मंडलका आज भुगतान करना चाहता हॅ। जो भी हो लाओ।

गीता: क्या हैं घरमे लानेके लिए? घर शीशे की तरह साफ हो गया है! घर में आप जिधर भी देखें, आपको अपने कर्तुतोंसे आयी बूरी हालत नजर आ सकेगी

तालीराम: तुम झूठ बोल रह हो! जेवर तो घर में भी कुछ नहीं!

गीता: आह! नहीं नहीं नहीं! क्या अब हम आपके सामने माथा तोड़ ?

तालीराम: देखो, झूठ मत बोलो। तुम्हारे पास तो कुछ नहीं है ?

गीता: मेरे माथे पर खाली तुम्हारे नामका कुमकुम बचा है। (कुंकू पोछके) इसे एक बार ले लो- उस कला के माथे पर रख दो, और पत्नी की दूसरी दुनिया के नाम पर आखिरी घूट ले लो! इससे  तुम छूट गए, और मैं भी छूट गयी!

तालीराम: देखो पत्नीकी जाति कैसी है! गीते, यह मेरी बेइज्जती है!

गीता: अहाहा! मर्यादा रखनेके लिए क्या आपने गुणोने कोई विजय हासिल की! तुंमने अपनी ही दुनिया बरबाद की, दूसरों की दुनिया भी बरबाद की! घर का चूल्हा ठंडा है। मेरी हड्डियाँ वहाँ रखो या तुम्हारी?

तालीराम: क्या अजीब बदचलन औरत है! गला घोटके मार डालू क्या? मैं शराब पीता हूँ इसलिए तुम मेरी बेइज्जती करती हो! रुको, तुम्हे नीचे दबोचकर शराब पिलाता हूँ! चलो, शराब पी लो, या घर से निकल जाओ! यदि नहीं, तो मैं तुम्हे पुराने बाजार में ले जाऊंगा और नीलामी बुलाऊंगा और जरूरतवाले ग्राहकको बेच दूंगा!

गीता: हाँ! मुंह की बात भी होगी! तुम्हारे पूर्वज ऊपर से नीचे आना चाहिए! आप गंदगीमे लुढकते हो वो काफी नही है?

तालीराम: क्यों जाती हो या पिती हो? क्या कुछ खरीखोटी सुनाकर आपने मुझे दादा साहब के घर जाने से रोका? चलो, ये शराबका घूट ले या मै तुम्हारे गलेका घूट लू? (वह उसे पकड़ लेता है। दोनों लड़ते हैं। वह उसे दूर धकेल देती है।)

गीता: हे भगवान, अब इस घर में नही रहना! (जाती है।) 

तालीराम : कुछ नही बिघडेगा आप जानेसे! तुम्हारे नाम से स्नान करके मैं मुक्त हो जाऊँगा ! अब लौट आओ घर में- तो खड़े-खड़े नहीं मारे गए तो तालीराम नाम नहीं। (जाता है। पर्दा गिरता है।)

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